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निकलती हैं
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बोल नही सकते तब आह निकलती है,
इसी तरह जीवनसे चाह निकलती है.
जंतरमंतर सा जीवन हो भले ही,
ईश के साथ ऱहते राह निकलती है.
नाविक को रास्ता- मंज़िल पता हो,
तब जाकर जीवनकी नाव निकलती है.
कलमको ह्दय रक्तमें डूबोकर लिखो,
तो किसी ग़ज़ल पर वाह निकलती है!
पेड़ो की तरह धूपको सहते रहोगें,
तो कभी ठंडी सी छाव निकलती है.
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-पूर्वी शुक्ल